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संत कबीर जी की आरती, Sant Kabir Aarti in Hindi

sant kabir aarti in hindi

संत कबीर जी की आरती

सुन संधिया तेरी देव देवाकर।
अधिपति अनादि समाई।।

सिंध समाधि अंतु नहीं पाय।
लागि रहै सरनई।।

लेहु आरती हो पुरख निरंजनु।
सतगुरु पूजहु भाई।।

ठाढ़ा ब्रह्म निगम बीचारै।
अलख न लिखआ जाई।।

ततुतेल नामकीआ बाती।
दीपक देह उज्यारा।।

जोति लाइ जगदीश जगाया।
बुझे बुझन हारा।।

पंचे सबत अनाहद बाजे।
संगे सारिंग पानी।

कबीरदास तेरी आरती कीनी।
निरंकार निरबानी।।

याते प्रसन्न भय हैं महामुनि।
देवन के जप में सुख पावै।।

यज्ञ करै इक वेद रहै भवताप हरै।
मिल ध्यान लगावै।।

झालर ताल मृदंग उपंग रबा।
बलीए सुरसाज मिलावै।।

कित्रर गंधर्व गान करै सुर सुन्दर।
पेख पुरन्दर के बली जावै।।

दानति दच्छन दै कै प्रदच्छन।
भाल में कुंकुम अच्छत लावै।।

होत कुलाहल देव पुरी मिल।
देवन के कुल मंगल गावैँ।।

हे रवि हे ससि हे करुणानिधि।
मेरी अबै बिनती सुन लीजै।।

और न मांगतहूँ तुमसे कछु चाहत।
हौं चित में सोई कीजे।।

शस्त्रनसों अति ही रण भीतर।
जूझ मरौंतउ साँचपतीजे।।

सन्त सहाई सदा जग माइ।
कृपाकर स्याम इहि है बरदीजे।।

पांइ गहे जबते तुमरे तबते कोउ।
आंख तरे नही आन्यो।।

राम रहीम पुरान कुरान अनेक।
कहै मत एक न मान्यो।।

सिमरत साससत्रबेदस बैबहु भेद।
कहै सब तोहि बखान्या।।

श्री असिपान कृपा तुमरी करि।
मैं न कह्यो हम एक न जान्यो कह्यो।।

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